भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों और उनकी सदियों पुरानी परंपराओं का संगम है। अग्रहरि वैश्य समुदाय, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ, विवाह के हर चरण में गहन अर्थ और ज्ञान को समेटे हुए है। आइए, इन पारंपरिक संस्कारों की गहराई को समझते हैं।
1. बीरा: दृढ़ संकल्प का प्रतीक अग्रहरि समाज में 'बीरा' (पान का बीड़ा) संबंध पक्का करने का एक प्राचीन द्योतक है। यह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि किसी कार्य को दृढ़ निश्चय के साथ करने की भारतीय परंपरा का प्रतिबिंब है। पान का बीड़ा, अक्षत (चावल), एक रुपया, हल्दी और सुपारी का इसमें विशेष महत्व है। यह दर्शाता है कि संबंध केवल आज के लिए नहीं, बल्कि एक दृढ़ संकल्प के साथ भविष्य के लिए स्थापित किया जा रहा है। हालांकि, आधुनिकता के साथ इसमें लौकिक प्रदर्शन का तत्व भी जुड़ गया है, पर इसका मूल अर्थ आज भी अडिग है।
2. लग्न: शुभ मुहूर्त का विधान 'लग्न' का शाब्दिक अर्थ है मुहूर्त, यानी एक शुभ समय। कन्या पक्ष द्वारा विवाह का शुभ मुहूर्त निकलवाकर वर पक्ष को भेजा जाता है। यह केवल पंचांग देखकर समय तय करना नहीं, बल्कि यह विश्वास है कि शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य सफलता और खुशहाली लाता है। यह परंपरा दोनों परिवारों के लिए नए जीवन की शुरुआत को एक सकारात्मक ऊर्जा से जोड़ने का प्रयास है।
3. खन माटी, मंडपाच्छादन एवं हरिद्रालेपन:
खन माटी: प्रकृति पूजन का आरंभ वैवाहिक कार्यक्रमों का आरंभ 'खन माटी' से होता है, जिसके पीछे मिट्टी का पूजन की गहरी भावना निहित है। यह रस्म हमें अपनी जड़ों, प्रकृति और जीवन को चलाने वाले प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान सिखाती है। मूसल, चक्की, दराती, चूल्हा, मथानी जैसी वस्तुओं का पूजन यह दर्शाता है कि जीवन में साधारण वस्तुओं का भी कितना महत्व है।
मंडपाच्छादन: सामर्थ्य और परंपरा का मेल यह रस्म राजा-महाराजाओं के बड़े-बड़े मंडप बनाने की प्राचीन परंपरा का अनुसरण है। आज भी, अपने सामर्थ्य के अनुसार, एक लकड़ी का खंभा गाड़कर मंडप की नींव रखी जाती है। यह दिखाता है कि भव्यता के बजाय भावना और परंपरा का पालन अधिक महत्वपूर्ण है।
हरिद्रालेपन (हल्दी लगाना): सौंदर्य और स्वास्थ्य का विज्ञान हल्दी का लेप केवल एक रस्म नहीं, बल्कि प्राचीन स्वास्थ्य विज्ञान का हिस्सा है। हल्दी शरीर को शुद्ध करती है, त्वचा को निखारती है, रक्त संचार को बेहतर बनाती है और शरीर को स्फूर्ति प्रदान करती है। विवाह संस्कार का मूल उद्देश्य दो जीवनसाथियों का शारीरिक मिलन है, और हरिद्रालेपन शारीरिक सौंदर्य व स्वास्थ्य को बढ़ाता है, जो इस उद्देश्य में सहायक होता है। हालांकि, कुछ स्थानों पर इस प्रथा का विकृत रूप देखा जाता है, जहाँ स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा जाता, जिससे इस वैज्ञानिक और लाभकारी प्रथा का मूल उद्देश्य ही खो जाता है।
4. मोर-मोरी: मुकुट का प्रतीकात्मक रूप विवाह संस्कार में मोर-मोरी (सिर पर पहनने वाला आभूषण) का अत्यधिक महत्व है। यह राजाओं के मुकुटों का ही एक प्रतीकात्मक रूपांतरण है। यह दर्शाता है कि हर वर-वधू अपने विवाह के दिन अपने-अपने संसार के राजा-रानी होते हैं, और सामर्थ्य के अनुसार ही इस शाही प्रतीक को अपनाया जाता है।
5. मायन: पितरों का आशीर्वाद 'मायन' में पितरों और देवताओं की पूजा की जाती है। यह रस्म परिवार के सभी सदस्यों को एकजुट करती है, और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है। यह हमें अपनी वंशावली और उन लोगों के प्रति कृतज्ञता सिखाती है जिन्होंने हमारे जीवन की नींव रखी है।
6. द्वारचार: आदर और खुशी का आदान-प्रदान जब बारात कन्या पक्ष के द्वार पर आती है, तब 'द्वारचार' की रस्म होती है, जिसका अर्थ है द्वार पर स्वागत। चावल और बताशे छिड़कने का रिवाज शुभ संकेत और प्रसन्नता का प्रतीक है। कन्या पक्ष चावल छिड़क कर शुभता का आह्वान करता है, और वर पक्ष बताशे फेंक कर धन्यवाद व अपनी खुशी व्यक्त करता है। कलश और अन्य मांगलिक वस्तुएं शुभता का द्योतक होती हैं।
7. पाणिग्रहण: जीवन भर की प्रतिज्ञा मंगलोपचार के बाद 'पाणिग्रहण' संस्कार होता है। संस्कृत में 'पाणिग्रहण' का अर्थ है हाथ ग्रहण करना – वर वधू का हाथ अपने हाथ में लेता है। यह जीवनभर एक-दूसरे का सहयोग करने और गृहस्थी को साथ मिलकर चलाने की प्रतिज्ञा है। यह केवल शारीरिक मिलन नहीं, बल्कि आत्मिक और वैचारिक जुड़ाव का प्रतीक है।
8. पैर पूजना: श्रद्धा और पवित्रता का भाव वर और कन्या के पैर कन्या पक्ष की ओर से पूजे जाते हैं। इस रस्म में श्रद्धा और पवित्रता की गहरी भावना निहित है। यह नए रिश्तों के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करने का तरीका है, जो दोनों परिवारों के बीच सामंजस्य स्थापित करता है।
9. खिचड़ी: एकजुटता का स्वाद और स्वस्थ भोजन का संदेश विवाह के दूसरे दिन 'खिचड़ी' की रस्म होती है, हालांकि अब यह धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। मूल रूप से, यह संध्याकालीन प्रीतिभोज की तैयारी थी और गरिष्ठ भोजन के बाद हल्का व सुपाच्य भोजन लेने का स्वस्थ संदेश भी देती थी। कुछ लोगों का मानना है कि दाल और चावल क्रमशः वर और कन्या पक्ष का प्रतीक हैं, जैसे वे मिलकर एक हो जाते हैं, वैसे ही दोनों परिवार भी एक हो जाएं। हालांकि, कई बार नेग को लेकर होने वाली खींचतान इस सुंदर भावना को धूमिल कर देती है।
विवाह का उत्सव: हास्य और उल्लास
10. अन्य वैवाहिक रश्म एवं रिवाज़: इन प्रमुख संस्कारों के अतिरिक्त, अग्रहरि विवाह में मिलनी, परछन, गाली-गवाई, जूता-चुराई, बाती मिलाई जैसे अनेक कार्यक्रम भी होते हैं। ये रस्में विवाह के गंभीर माहौल में हास्य, उल्लास और मनोरंजन का संचार करती हैं, इसे एक यादगार उत्सव बनाती हैं।