देश की गुलामी से मुक्त होने की दृढ इच्छा शक्ति सर्वप्रथम विद्रोह के रूप में वर्ष १८५७ में स्वतंत्रता की चेतना के साथ अभिव्यक्त हुई जो कि लगभग ९० वर्षो के निरंतर संघर्ष के पश्चात १५ अगस्त १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ पूरी हुई। स्वाधीनता के इस आन्दोलन में अनेक क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। एक ओर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस, जयप्रकाश नारायण, महात्मा गाँधी, विनोबा भावे, जवाहरलाल नेहरु, लोकमान्य तिलक, सरदार वल्लभभाई पटेल आदि महापुरुषों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं दूसरी ओर हमारे अग्रहरि वैश्य समाज के रणबांकुरों ने भी स्वाधीनता के आन्दोलन में पीछे नही हटे और देश की आज़ादी के इस महासंघर्ष में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। देश की आजादी में अग्रहरि समाज का योगदान अमूल्य रहा है। इसे कोई भी कभी भुला नहीं सकता। आज हम अपने समाज के ऐसे ही वीर महापुरुषों के बारे में जानेंगे, जिन पर समाज को फक्र हैं।
मिट्ठूलाल अग्रहरि (Mitthulal Agrahari)
स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री मिट्ठूलाल अग्रहरि जी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जम कर हिस्सा लिया था। दिनांक ३ सितंबर १९४२ को मिट्ठूलाल जी को गिरफ्तार कर उनके विरूद्ध ३८ तथा ३५ (४) डी.आई.आर. के तहत मुकदमा पंजीकृत कर कारावास भेज दिया गया था। इस दौरान आप ६ महीने तक जेल मे रहे। जेल से छूटने के बाद भी श्री अग्रहरि ने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए संघर्षरत रहे। १०५ वर्षीय वयोवृद्ध सेनानी मिट्ठूलाल अग्रहरि को ५ अक्टूबर २००९ को ह्रदय की गति रुकने (Cordial attack) के कारण मृत्यु हो गई। अश्रुपूरित नयनो के बीच भारत माता के इस महान सपूत श्री मिट्ठूलाल अग्रहरि को उत्तर प्रदेश प्रशासन ने गार्ड ऑफ हॉनर सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी।
धर्मनाथ अग्रहरि (Dharmanath Agrahari)
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय श्री धर्मनाथ अग्रहरि जी बिहार प्रान्त से सिवान जनपद के चैनपुर, महावीर चौक के निवासीथें। आपने सन १९४२ में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान तत्कालीन छपरा जिलें के अंग्रेज दुश्मनो के छक्के छुड़ाने वाले रणबांकुरो में से एक थें। आपके पिता का नाम स्वर्गीय सरयू प्रसाद अग्रहरि था। ३ अक्टूबर २००८ को भारत माँ के वीर सपूत धर्मनाथ अग्रहरि जी का देहावसान हो गया। अंतिम संस्कार सरयू नदी के पावन तट पर हुआ।
हरिनारायण अग्रहरि (Hari Narayan Agrahari)
क्रांतिकारी स्वर्गीय श्री हरिनारायण अग्रहरि को बनारस के प्रसिद्ध धानापुर थाना काण्ड के लिए जाना जाता हैं। श्री अग्रहरि ने सन १९४२ में भारत छोडो आन्दोलन में भाग लेते हुए क्रांतिकारी साथियों के साथ धानापुर पुलिस थाना को तहस नहस कर दिया। क्रांतिकारियों ने पुलिस अधिकारियो को मारने के बाद उनके मृत शरीर को गंगा में फेक दिया। और सरकारी ईमारत में भारत का झंडा लहराया। वाराणसी के इस प्रसिद्ध धानापुर थाना कांड में स्व. हरिनारायण अग्रहरि तथा अन्य साथी क्रांतिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आप जिला चंदौली के कमालपुर गाँव के निवासी थे।
शिवशंकर गुप्ता (Shiv Shankar Gupta)
निज़ाम स्टेट के औंरंगाबाद जिला वर्तमान जालना (महाराष्ट्र) के मोकरपहन नामक गाँव में १४ नवम्बर सन १९१८ ई। में जन्में स्व. श्री शिवशंकर गुप्ता जी अल्पआयु में ही सेवा को अंगीकार कर लिए थे, इनका पैतृक गाँव उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित अगई कुसवापुर (लालगंज के पास) हैं। उस समय निज़ाम स्टेट में स्कूल सिर्फ चौथी कक्षा तक था। पढ़ाई मराठी एवं उर्दू में होती थी, उस जमाने में शिवशंकर जी ने ९वी तक उर्दू तथा मराठी में पढाई की। निजाम के ज़ुल्मों से तंग आकर शिवशंकर जी ने गाँव के नौजवानों को संगठित कर निजाम के खिलाफ बगावत कर दी। ये लोग दिन में भूमिगत रहते थे व रात को पुलिस स्टेशन आकर मिलिट्री कैंप आकर हमला करते थे।
शिवशंकर जी ने अपने हाथ में भारत का तिरंगा साथ लेकर राष्ट्रीय गान गाकर आह्वाहन किये-
हम वीरो की संतान, लगा दो अपनी जान।
तब नया जमाना आएगा। जब-जब दुश्मन आयेंगे,
हम उनको मार भागाएगें। बीत गए वह दिन
जब तुमने भगत सिंह को फांसी पर लटकाया,
नया जमाना आएगा।
यह गान गली मोहल्ला सभी जगह फैल गया, तब निज़ाम ने इनके घरो पर कब्ज़ा कर लिया। शिवशंकर जी तभी पीपल गाँव आकर आश्रय ले लिए।
सरदार बल्लभभाई पटेल ने जब हैदराबाद पर धावा बोलकर १९ सितम्बर १९४७ को भारत सरकार के साथ मिलकर तिरंगा झंडा हैदराबाद स्टेट पर लहराया। ऐसे वीर पुरुष महान क्रांतिकारी सेनानी स्वर्गीय श्री शिवशंकर गुप्ता जी को हम सादर नमन करते हैं।
दीनदयाल गुप्त (DEEN DAYAL GUPTA)
परिवार एवं समाज की अविद्या व आर्थिक दशा से संघर्ष करते हुए स्व. श्री दीनदयाल गुप्त जी, नागपुर, (महारष्ट्र) क्षेत्र में अपनी जीवन नौका को राष्ट्रीय प्रवाह में खेते हुए आगे बढ़ने वाले अग्रहरि सपूत थे। राष्ट्रीय विद्यालय में अपनी शिक्षा प्राप्त कर देश में होने वाले आन्दोलनों में भी आप सक्रिय भाग लेते थे। सन १९२६ का झंडा सत्याग्रह के रूप में, और सन १९३० के सविनय अविज्ञा आन्दोलन में युद्ध मंडल के एक सर्वमान्य कर्याकर्ता के रूप में जाने गए। राष्ट्रभाषा प्रचार, हरिजन शिक्षा, अखाड़ों का संगठन तथा श्रमिक संगठन इत्यादि कार्यो के साथ वें नागपुर कांग्रेस कमिटी के विभिन्न पदों पर रहे। सन १९४० का व्यक्तिगत सत्याग्रह और सन १९४२ का भारत छोड़ो आन्दोलन संगठित करने में आपका अत्यधिक योगदान था। सन १९४५ में जेल से आने के बाद आपने व्यवसाय भी किया किन्तु जनसेवा की प्रवित्ति के कारण न कर सके तथा नागपुर कांग्रेस के सभापति बन गए। सन १९५२ में विधान सभा चुनाव में विजयी हुए। इन्हें मंत्री मंडल में भी लिया गया तथा खाद्य मंत्री बनाये गए। खाद्य के साथ ही साथ आपको आपको श्रम विभाग एवं समाज कल्याण विभाग भी सौंपा गया, जो आपके महत्व को दर्शाता हैं। सन १९५ में कनाडा में समाज कल्याण परिषद में भी आपने देश का प्रतिनिधित्व किया।
सन १९५६ में प्रदेशो की पुनर्रचना हुई। इस कारण वें विशाल बम्बई राज्य के श्रम मंत्री बने रहे और बाद में १९५७ से १९६२ तक विधान सभा के उपाध्यक्ष एवं राज्य खादी गृह उद्योग मंडल के सभापति रहे। सन १९६२ के बाद वें सत्ता की राजनीति से निवृत्त होकर खादी जन जागरण स्वास्थ्य सेवा आदि कार्यों में पूर्ण रूप से निमग्न हो गए।
गौरीराम गुप्त (अग्रहरि) (GAURIRAM GUPTA)
स्व. गौरीराम गुप्त अग्रहरि, उत्तर प्रदेश के धानी बाज़ार जिला गोरखपुर के निवासी थे।बाल्यावस्था से ही आपका जीवन संघर्ष में व्यतीत हुआ। इसी कारण आपली शिक्षा-दीक्षा भी ठीक से नहीं हो सकी और आप मिडिल परीक्षा (आठवीं) उत्तीर्ण करने के बाद आगे पढ़ न सके। श्री गुप्त जी अपने साहस, परिश्रम और कुशल व्यवहार के लिए विख्यात थे। गरीबों पर हो रहे अत्याचार का आपने डटकर सामना किया। जमींदार और लेहड़ा स्टेट (एक रियासत) के अंग्रेजों से आप सदा ही संघर्ष करते रहे। वास्तव में आप सच्चे अर्थों में गरीबो के मसीहा थे। आकस्मिक घटनाओ के समय तो आप सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते ही थे, दैनिक जीवन में भी दीन -दुखियों की सहायता करना आपका स्वाभाव था। गाँधीवादी विचारधारा रखने वाले गुप्त जी का कांग्रेस में अटूट विश्वास था। देश की आज़ादी के लिए आप अनेको बार जेल गए। सन १९४२ में आपको अंग्रेजो द्वारा नाना प्रकार की यातनाये दी गई। घर से बेघर कर दिया गया किन्तु आपने धैर्यपूर्वक सबकुछ सहन किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उत्तर प्रदेश के प्रथम विधानसभा चुनाव १९५२ में कांग्रेस पार्टी की टिकट से चुनाव जीतकर विधायक बने। आप लगातार १५ वर्षो तक विधान सभा के सदस्य रहे। आपका प्रभाव विधान सभा में भी था, यही कारण हैं कि अनेक मुख्यमंत्री जैसे स्व. श्री गोविन्द बल्लभ पंत, स्व. संपूर्णा नंद, स्व. श्रीमती सुचिता कृपलानी, स्व. श्री सी.वी. गुप्त, स्व. श्री चौधरी चरण सिंह जैसे प्रख्यात राजनीतिज्ञ आपके प्रशंशक में थे। ७८ वर्ष की आयु में इनका स्वर्गवास हो गया। उस समय प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी ने गहरा दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि - "श्री गुप्त जी एक समर्पित राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने देश के आज़ादी के लिए निरंतर संघर्ष किया। उनके निधन से राष्ट्र और प्रांत को भारी क्षति हुई हैं।"
रामाधार प्रसाद "सुमन" (Ramadhar Prasad "Suman")
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. रामाधार प्रसाद "सुमन" जी भेलाही, पूर्वी चंपारण से थे। आपको नेपाल सर्कार से भी स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाण पत्र प्राप्त हैं।
अग्रहरि गिरधारी लाल "आर्य" (Agrahari Girdhari Lal "Arya")
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय श्री गिरधारी लाल "आर्य" सुपुत्र स्व। शिवराजराम अग्रहरि, का जन्म विक्रम संवत १८७६ को नौतनवा (गोरखपुर, उ.प्र.) में हुआ। सन १९४२ 'भारत छोडो आन्दोलन' में आपने सक्रियतापूर्ण भाग लिए और एक वर्ष की कारावास की सजा हुई। आप एक अच्छे कवि भी थें।
रामप्रसाद लाल गुप्ता (Ram Prasad Lal Gupta)
स्वर्गीय रामप्रसाद लाल गुप्ता (अग्रहरि) स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में ख्याति प्राप्त योद्धा थें, जिन्होंने दो बार लम्बी जेल यात्राएं की थी और अपने जीवन के स्वर्णिम-यौवन गलियों में घूम-घूमकर आज़ादी का अलख जागते थे। उन दिनों अपराध मने जाने वाले अपने इन्ही कृत्यों के कारण कई बार अंग्रेजो के डंडे खाते हुए जेल की यात्राएं करनी पड़ी। आपका जन्म बिहार प्रान्त के पटना जिला के बख्तियारपुर नगर के एक जमींदार परिवार में हुआ था।
खोमारी साह (Khomari Sah)
स्व. खोमारी साह का जन्म प्रसौनीभाठा, नेपाल में हुआ। आप एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहें हैं। सन १९४२ के भारत छोडो आन्दोलन में पड़ोसी देश भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और रक्सौल, भेलवा, सुगौली रेलवे लाइन को क्रांतिकारियों ने खाड़ फेका। आपको सजा भी हुई। आप सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कवि एवं लेखक डॉ० (इंजी) हरिकृष्ण गुप्त अग्रहरि (BSc, P.hd, Hungry) के पिता हैं।
डॉ सुरेन्द्र नाथ अग्रहरि (Dr. Surendra Nath Agrahari)
स्वर्गीय डॉ सुरेन्द्र नाथ अग्रहरि ने स्वाधीनता संग्राम में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। जिसके लिए इन्हें बहुत सी यातनाये झेलनी पड़ी। पहले इन्हें नैनी जेल में रखा गया था बाद में बरेली जेल भेज दिया गया। इनसे तो जेल अधीक्षक भी भय खाता था क्योंकि ये कब क्या कर दें किसी को मालूम नही होता था। जेल प्रशासन इनके लिए इतना सख्ती बरतता था जिससे इनके परिजन बहुत मशक्कत के बाद ही जेल में इनसे मिल पाते थे। फैजाबाद नगर पालिका ने इनकी स्मृति में एक रोड का नामकरण इनके नाम पर किया है।