आज भारत में वैश्यों की कुल जनसंख्या २५ करोड़ हैं, जिनमें अग्रवालों की संख्या ७-८ करोड़ के लगभग और अग्रहरि वैश्यों की संख्या ४५-५० लाख के लगभग हैं। इतिहास इस बात का साक्षी हैं की अग्रवालों से कुछ व्यक्तिगत समस्याओं और खान-पान को लेकर अग्रहरि अलग हो गये। अग्रहरियों ने कभी मुग़लो व अंग्रेजो का साथ नहीं दिया और स्वाभाविक पूर्वक ऐकनेक प्रकारेण जीवन की नौका आगे बढ़ाते रहे।
विश्व शब्कोष में अग्रहरि शब्द का उल्लेख मिलता है, जिसके वहाँ तीन अर्थ बताये गए है।
अग्रहरि शब्द अग्र+हरि से बना है। हारी शब्द का अर्थ हार करने वाला होता है। हार शब्द ह्रा धातु से बना है। इसका अर्थ होता है जुटाना, एकत्र करना, यानि कलेक्शन (Collection) करना। फ़ारसी लमें अग्रहरि शब्द का अर्थ हासिल करने वाला तहसील (वसूली) से बना है। सम्राट अशोक के शासन का में अग्रहार का उल्लेख प्राप्त होता है। दंडीकृत "दसकुमार चरितम"में अग्रहार जनपद का विवरण है, जैसे "कसिमाश्चंग्रहार" (किसी अग्रसार में) शब्द से किसी स्थान बोध होता है। अतः वहां के निवासियों क नाम अग्रसार तथा स्त्री प्रत्यय लगाने पर अग्रहरि बन जाता है। आगे चल कर वही शब्द अग्रहरि में परिणत हो गया।
महाराजा अग्रसेन के ज्येष्ठ पुत्र का नाम विभूंथा (विभू) का अर्थ विष्णु हरि होता हैं। संभव है, विभु समानार्थी हरि से अग्रहरि वंश की उत्पत्ति हुई हो। महाराजा अग्रसेन की पाँचवी पीढ़ी में राजा हरि हुए। इसलिए संभव हैं कि दोनों राजाओ अग्र (महाराजा अग्रसेन) और हरि (राजा हरि) के नाम अग्र+हरि = अग्रहरि रखा हो। हरि जी अग्रवालों से पृथक होकर अग्रवंश की स्मृतियों को चिरस्थायी रखने के लिए अपने नाम के आगे "अग्र" विशेषण अपने को अग्रहरि कहलाने लगे। वें अग्रवाल जो हरि जी के शाखा हैं, वें अग्रहरि नाम से विख्यात हुए।
अग्रहरि जाति का सम्बन्ध निर्विवाद रूप से अग्रवालों से है। दोनों ही महाराजा अगसेन जी के वंशज हैं। अग्रवालों से किसी कारण विशेष से यह जाति पृथक हुई थी।
श्री गुलाब चन्द ऐरण के मतानुसार सन ११९४ ई. में अग्रहरि जाति अग्रवाल जाति से पृथक हो गई। यह जाति भी अग्रवंश की एक शाखा ही हैं, हरि जी ने हिंसा के कार्यों में सहयोग न देकर अपने आप को अग्रवालों से अलग कर लिया। इस प्रकार "अल्गाहारी" (अलग+अहारी) बनकर अपना शुद्ध भोजन बना कर खाने लगे। अल्गाहारी का रूपांतरण आगे चलकर अग्रहरि बन गया।
दूसरे विद्वान का मत है कि, ये लोग "अगर" नामक एक सुगन्धित लकड़ी का व्यापार करते थे। इसलिए इन्हें "अगर" से हारने वाले अर्थात बेचने वाले को अग्रहरि कहा गया।
प्रसिद्ध विद्वान नेस्फील्ड ने लिखा है, अग्रहरियों का घनिष्ठ सम्बन्ध अग्रवालों से हैं. ये दोनों जातियां एक ही जाति का विभाग है, जो आपस में सिर्फ खान-पान के कारन अलग हो गए। विलियम क्रूक ने लिखा है कि-
अग्रहरि शब्द आग्रेय शब्द है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार यह एक जाति का रूप माना जाता था। यह आग्रेय (अग्रोहा) का ही रूप है। इसका हिन्दी में अर्थ है अग्रका। अग्रहरि व अग्रवाल जाति के पूर्वज अग्रसेन थे, जिनके वंशज आगे चलकर आग्रेय अर्थात अग्रहरि व अग्रवाल कहलाये। अग्रहरि शब्द का बोध अगर नामक स्थान से भी होता हैं।
आज के अग्रहरि जाति पुराने समय में आग्रेयण, आग्रय, तथा अग्रवंशी भी कहलाते थे। ऑक्सफ़ोर्ड (इंग्लैंड) की इंडियन इंस्टिट्यूट लाइब्रेरी में प्राप्त पद्मपुराण की एक हस्तलिखित प्रति में अग्रवंश के मुरारीदास नामक व्यक्ति ने कुछ इस तरह लिखा है, -
भावार्थ सुर्यवंश में महाश्रेष्ठ व धर्मरक्षक अग्रवंश हुआ इस जाति के बारे में लिखते हैं।
Their name has been connected with the cities of AGRA AND AGROHA. अर्थात इस जाति का सम्बन्ध आगरा व अग्रोहा से है. Their is no doubt that they are closely connected with the Agrawals. (Cand T.P. 133) अर्थात इसमें कोई संदेह नहीं कि इस जाति का अग्रवालों से बड़ा ही समीपस्थ सम्बन्ध है.
The group most have been section of one and the same cost which quesseled on same trifling questions connected with cooking or eating and have remained separated ever since. (N Field C.S.)
अग्रहरि जाति की उत्पत्ति के विषय में विश्व कोष का उदहारण यहाँ प्रस्तुतु है-
अग्रहरि जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेको मत हैं- कुछ लोगो का कहना हैं कि, अग्रोहा पर आक्रमण होने से अग्रहरि लोग अग्रोहा छोड़कर चले गए और इसका संबोधन, अग्रोहा हारे, अग्रहारे और सक्षिप्त होते होते बाद में अग्रहरि पड़ गया। इस वर्ग के लोग बिहार, उत्तर प्रदेश, वाराणसी, मध्य प्रदेश, भागलपुर, रायबरेली, डलमऊ, ऊंचाहार, प्रतापगढ़, लखनऊ, आगरा, पूर्वी-पश्चिमी चंपारण, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, फतेहपुर, सुल्तानपुर, इलाहबाद, आजमगढ़, फैजाबाद, जौनपुर, कानपुर, जबलपुर, नेपाल, बर्मा (म्यांमार), आदि स्थानों में रहते है। वर्तमान में ये अग्रहरि जाति के लोग पुरे भारत वर्ष में फ़ैल गए है।
विश्व शब्कोष में अग्रहरि शब्द का उल्लेख मिलता है, जिसके वहाँ तीन अर्थ बताये गए है।
- राजा की ओर से ब्राह्मणों को दी गई जमीन।
- देवताओं को अर्पित की हुई संपत्ति।
- धान्यपूर्ण खेत।
अग्रहरि शब्द अग्र+हरि से बना है। हारी शब्द का अर्थ हार करने वाला होता है। हार शब्द ह्रा धातु से बना है। इसका अर्थ होता है जुटाना, एकत्र करना, यानि कलेक्शन (Collection) करना। फ़ारसी लमें अग्रहरि शब्द का अर्थ हासिल करने वाला तहसील (वसूली) से बना है। सम्राट अशोक के शासन का में अग्रहार का उल्लेख प्राप्त होता है। दंडीकृत "दसकुमार चरितम"में अग्रहार जनपद का विवरण है, जैसे "कसिमाश्चंग्रहार" (किसी अग्रसार में) शब्द से किसी स्थान बोध होता है। अतः वहां के निवासियों क नाम अग्रसार तथा स्त्री प्रत्यय लगाने पर अग्रहरि बन जाता है। आगे चल कर वही शब्द अग्रहरि में परिणत हो गया।
महाराजा अग्रसेन के ज्येष्ठ पुत्र का नाम विभूंथा (विभू) का अर्थ विष्णु हरि होता हैं। संभव है, विभु समानार्थी हरि से अग्रहरि वंश की उत्पत्ति हुई हो। महाराजा अग्रसेन की पाँचवी पीढ़ी में राजा हरि हुए। इसलिए संभव हैं कि दोनों राजाओ अग्र (महाराजा अग्रसेन) और हरि (राजा हरि) के नाम अग्र+हरि = अग्रहरि रखा हो। हरि जी अग्रवालों से पृथक होकर अग्रवंश की स्मृतियों को चिरस्थायी रखने के लिए अपने नाम के आगे "अग्र" विशेषण अपने को अग्रहरि कहलाने लगे। वें अग्रवाल जो हरि जी के शाखा हैं, वें अग्रहरि नाम से विख्यात हुए।
अग्रहरि जाति का सम्बन्ध निर्विवाद रूप से अग्रवालों से है। दोनों ही महाराजा अगसेन जी के वंशज हैं। अग्रवालों से किसी कारण विशेष से यह जाति पृथक हुई थी।
श्री गुलाब चन्द ऐरण के मतानुसार सन ११९४ ई. में अग्रहरि जाति अग्रवाल जाति से पृथक हो गई। यह जाति भी अग्रवंश की एक शाखा ही हैं, हरि जी ने हिंसा के कार्यों में सहयोग न देकर अपने आप को अग्रवालों से अलग कर लिया। इस प्रकार "अल्गाहारी" (अलग+अहारी) बनकर अपना शुद्ध भोजन बना कर खाने लगे। अल्गाहारी का रूपांतरण आगे चलकर अग्रहरि बन गया।
दूसरे विद्वान का मत है कि, ये लोग "अगर" नामक एक सुगन्धित लकड़ी का व्यापार करते थे। इसलिए इन्हें "अगर" से हारने वाले अर्थात बेचने वाले को अग्रहरि कहा गया।
प्रसिद्ध विद्वान नेस्फील्ड ने लिखा है, अग्रहरियों का घनिष्ठ सम्बन्ध अग्रवालों से हैं. ये दोनों जातियां एक ही जाति का विभाग है, जो आपस में सिर्फ खान-पान के कारन अलग हो गए। विलियम क्रूक ने लिखा है कि-
अग्रहरियों का एक विभाग इलाहबाद, बनारस, गोरखपुर, फैजाबाद जिलों में बहुधा पाया जाता है। ये लोग जनेऊ धारण करते है व इनका नाम अग्रोहा से सम्बन्ध रखता है।"द पीपल ऑफ़ इंडिया" के लेखक मि. रिजले ने लगभग सन १८७५ में लिखी गई पुस्तक में अग्रहरि जाति के विषय में इस प्रकार लिखा -
भारत वर्ष के प्राचीन इतिहास में अग्रहरि वें गाँव कहलाते थे, जो राज्य की ओर से गुरूप्रणाली की शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के लिए नियत थे। इन ग्रामों की आम शिक्षा कार्य में लगती थी। दक्षिण भारत में उन मुहल्लों को अग्रहरि कहते थे जहां पर उन गुरुकुलों में शिक्षा देने वाले अध्यापकगण रहा करते थें। ये अध्यापकगण दक्षिण भारत से उत्तर भारत में गए थे और दक्षिण में उन्हें ब्राह्मणों का आदर प्राप्त था तथा उन्हें अग्रहारम या अग्रहरि कहा जाता था। दक्षिण में मुस्लिम शासन में अग्रहरि समाप्त हो गए परन्तु गुरुकुल शिक्षा प्रणाली लागू थी। एक यह भी विचार है कि दक्षिण भारत में विजयनगर राज्य नष्ट होने पर और हिन्दी शिक्षण संस्थाओं का विनाश होने पर बहुत से अग्रहरि पुनः नर्मदा नदी पार कर मध्य प्रदेश होते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार नेपाल वापस आ गये जहाँ से इनके पूर्वज दक्षिण गए थे। यहाँ पर आजीविका के लिए उन्हें कृषि, वाणिज्य कार्य अपनाना पडा। कालांतर में उन्हें अपने को वैश्य समुदाय के अंग में स्थापित कर लिया। कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी की माँग को अस्वीकार कर अपन अग्रोहा नगर छोड़कर गंगा-यमुना के बीच शरणार्थी की तरह भाग निकले और एक जत्थे के रूप में गंगातट डलमऊ, रायबरेली में एकत्र हुए। यह स्थान उस समय बहुत ही मनोहारी व रमणीक था जहाँ का राजा हिन्दू थ। यही से लोग पूर्व उत्तर, दक्षिण प्रस्थान किये।
अग्रहरि शब्द आग्रेय शब्द है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार यह एक जाति का रूप माना जाता था। यह आग्रेय (अग्रोहा) का ही रूप है। इसका हिन्दी में अर्थ है अग्रका। अग्रहरि व अग्रवाल जाति के पूर्वज अग्रसेन थे, जिनके वंशज आगे चलकर आग्रेय अर्थात अग्रहरि व अग्रवाल कहलाये। अग्रहरि शब्द का बोध अगर नामक स्थान से भी होता हैं।
आज के अग्रहरि जाति पुराने समय में आग्रेयण, आग्रय, तथा अग्रवंशी भी कहलाते थे। ऑक्सफ़ोर्ड (इंग्लैंड) की इंडियन इंस्टिट्यूट लाइब्रेरी में प्राप्त पद्मपुराण की एक हस्तलिखित प्रति में अग्रवंश के मुरारीदास नामक व्यक्ति ने कुछ इस तरह लिखा है, -
संवत् १७१९ वर्ष भाद्रपदमास शुक्ल पक्षे दशम्यां तिथौगुरू वासरे इदं पद्मपुराण लिखितम अग्रेशे शाधु साह श्री गजाधर तत्पुत्र पुराय प्रतिपालक साह श्री स्वयं आत्मपाठनार्थ धर्मानंद विनोदार्थम।।इस उदहारण से स्पष्ट है कि अग्रहरि जाति को अगरवंशी कहा जाता था। इसके अतिरिक्त परंपरा का अनुशरण करते हुए या धर्मशास्त्रों का व्यवस्थानुसार अग्रहरि जाति के लोग अपने नामों के साथ प्रायः साह, गुप्त वर्तमान में अग्रहरि लिखते रहे, अग्रवंश के उतमता के विषय में ऐसा प्रमाण मिलता हैं-
एवं सुर्यग्रहे वंशश्चिरया युस्ततः परम।
अग्रवं महाश्रेष्ठ मन्निवेश्यदयोमिच। ।
एवं वंश महाश्रेष्ठों धर्मरक्षक केवल।
यदुवं शेषु संम्यूतोविष्णु धर्मात हेतेवे। ।
Their name has been connected with the cities of AGRA AND AGROHA. अर्थात इस जाति का सम्बन्ध आगरा व अग्रोहा से है. Their is no doubt that they are closely connected with the Agrawals. (Cand T.P. 133) अर्थात इसमें कोई संदेह नहीं कि इस जाति का अग्रवालों से बड़ा ही समीपस्थ सम्बन्ध है.
The group most have been section of one and the same cost which quesseled on same trifling questions connected with cooking or eating and have remained separated ever since. (N Field C.S.)
अग्रहरि जाति की उत्पत्ति के विषय में विश्व कोष का उदहारण यहाँ प्रस्तुतु है-
हे लोक बानिया असून पांचा
जबलपुर व राजगढ़ या भांगानील
अगिरयांशी संबंध आहे मुख्य बेकरून
उत्तर प्रदेशात ही जात आढलते
26 comments
Good information
Thanks Arvind, Jai Sri Agrasen, Keep visiting.
Plz contact me personally...
Aapse personally discuss karna pasand karunga..
Because the history is posted is incompleted or some are imaginary as per your words..
Their are also many history of others author which you have not posted..
The whatever history is poated by you are dipicting relation of agrawal, also their is other history too which are saying n proofing no relation with agrawal..
As per me it is wrong to publish one sided history until and unless your published matter is proved by indian govt.
The history of agrawal is proved and authorised, no matter, but our agrahari have no evidences of relationships, just on estimations..
So dear plz also post others writher n author history too so that peoples could conclude n help in revealing through their own belief..
Hi Sachin,
We would love to hear your version of history. Please share your contact detail, we will get back to you.
Thanks
sumit kumar gupta
बहुत ही सुंदर जानकारी
Thanks for this post..
क्या कोई मुझे ये जानकारी दे सकता है कि बिहार में अग्रवाल (मारवाड़ी) किस केटेगरी में आता हैं ओबीसी या जनरल
क्या कोई मुझे ये जानकारी दे सकता है कि बिहार में अग्रवाल (मारवाड़ी) किस केटेगरी में आता हैं ओबीसी या जनरल
अग्रवाल बिहार समेत भारत के सभी राज्यों में सामान्य वर्ग यानि जनरल कैटेगरी में आते हैं।
पिछड़ा वर्ग= BC-2 = BC
BC-2/2/कागजी
BC-2/4/क
ु
शवाहा (कोईिी)
BC-2/5/कोस्ता
BC-2/6/गद्दी
BC-2/7/घटवाि
BC-2/9/चनउ
BC-2/10/जदप
ु
टतया
BC-2/11/जोगी (जग
ु
ी)
BC-2/15/नालबंद (र्मट
ु
स्लर्म)
BC-2/17/पिथा
BC-2/20/बटनया- (सढ
ू
ी,
र्मोदक/र्मायिा,
िोटनयाि, पनसािी,
र्मोदी, कसेिा,
के शिवानी, ििेिा,
कलवाि
(कलाल/एिाकी),
(टवयाहुत कलवाि),
कर्मलापि
ु
ी वैश्यल,
र्माहुिीवश्ैयि, बंगी वश्ैय
(बंगाली बटनया),
बनतवाल, अग्रहरि
वैश्य, वैश्य पोद्दाि,
कसौधन, गंधबटनक,
बाथर्म वैश्य, गोलदाि
(पव
ू
ी / पटिर्म
चंपािण), कर्मलापि
ु
ी
वायल
BC-2/22/यादव- (ग्वाला, अहीि,
गोिा, घासी, र्मेहि, सदगोप,
लक्ष्र्मी नािायण गोला)
BC-2/25/िौटतया
BC-2/28/टशवहिी
BC-2/29/सोनाि
BC-2/30/सत्र
ू
धाि
BC-2/31/सट
ु
कयाि
BC-2/33/ईसाई धर्मातवलंबी
(हरिजन)
BC-2/34/ईसाई धर्मातवलंबी
(अन्य टपछडी जाटत)
BC-2/35/क
ु
र्मी
BC-2/36/ भाट/ भट /ब्रह्मभट्ट/
िाजभट (टहन्द)ू
BC-2/39/जट (टहन्द)ू(सहिसा,
सप
ु
ौल, र्मधेपि
ु
ा औि
अिरिया टजलों के टलए)
BC-2/40/जट (र्मट
ु
स्लर्म)
(र्मधब
ु
नी, दिभंगा,
सीतार्मढी, खगटडया एवं
अिरिया टजलों के टलए)
BC-2/41/र्मडरिया (र्मट
ु
स्लर्म)
(र्मात्र भागलपि
ु
टजला
केसन्हौाला प्रखडं एवं
बांका टजला केधोिैया
प्रखण्ड के टलए)
BC-2/42/दोनवाि (के वल
र्मधब
ु
नी औि सप
ु
ौल
टजलों केटलए)
BC-2/43/सि
ु
जापि
ु
ी र्मट
ु
स्लर्म
(शेख, सैयद, र्मटल्लक,
र्मोगल, पिान को
छोडकि) (केवल पट
ू
णतयां,
कटटहाि, टकशनगंज एवं
अिरिया टजलों के टलए)
BC-2/44/र्मटलक (र्मट
ु
स्लर्म)
BC-2/45/सैंथवाि
BC-2/46/गोस्वार्मी, सन्यासी,
अटतथ /अटथत, गोसाई,
जटत/यती
BC-2/1/ (टवलोटपत)
BC-2/3/टवलोटपत
BC-2/8/ (टवलोटपत)
BC-2/12/ (टवलोटपत)
BC-2/13/ (टवलोटपत)
BC-2/14/टवलोटपत
BC-2/16/ (टवलोटपत)
BC-2/18/टवलोटपत
BC-2/19/ (टवलोटपत)
BC-2/21/ (टवलोटपत)
BC-2/23/ (टवलोटपत)
BC-2/24/ (टवलोटपत)
BC-2/26/ (टवलोटपत)
BC-2/27/ (टवलोटपत)
BC-2/32/ (टवलोटपत)
BC-2/37/ (टवलोटपत)
BC-2/38/ (टवलोटपत)
अपिषे
क
कु
म़ार
अिय (पिक्षक)
(+
2
टतिहुत
एकेडर्मी, सर्मस्तीपुि)
स्रोत- RTPS टबहाि की वेबसाइट (18.10.2016)
अग्रवाल, माहेश्वरी और खंडेलवाल जो की मारवाड़ी उपनाम से भी जाने जाते हैं संपूर्ण भारत में जनरल केटेगरी में आते हैं जबकि अग्रहरी,केशरवानी,सुढ़ी, बरनवाल,कलवार,हलवाई आदि वैश्य जातियां बिहार व कुछ अन्य राज्यों में ओबीसी में आती हैं।
बेहतरीन
Agrahari ka gort kya hai
Mai AGARI HU MARASTRA MUMBAI SE Mujhe jaana hai apne JAATI KA ITHIYAS
agrahari comes under General category......and Maharaja Agrasen is our forefather too
Bhrahman kshatriya kesharavani shrivastav ko chodakar sbhi cast obc me aate h.
Agrhari cast kis category me aate hai up me genral ya obc
अग्रहरि जाति बिहार झारखंड में में बीसी तथा यूपी हरियाणा एवं अन्य राज्यों में सामान्य श्रेणी में रखा गया है । अग्रवाल जाति अपने सामाजिक रूप से संपन्न होने के कारण सामान्य श्रेणी में आते हैं ।
nice article, we have complete vanshawali from Brahma ji , please contact Agrvanshawali@gmail.com
https://www.facebook.com/%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%80-Genealogy-of-Agrawals-107458705022779
Thanks brother Iam also a
Agrahari csat
अग्रहरि और अग्रवाल कभी एक ही थे जिनको सत्ता का संरक्षण मिला अर्थात मुगलों का वे तो वे अग्रवाल हुए। जिन्हें केवल इज्जत प्यारी थी वे हार कर भाग गए वे हारे हुए थे छुप कर गावों के अंदर रहने लगे गरीबी में रहे वे अग्रहारे हैं दोनो ही अग्रोहा के हैं ।एक अग्रवाल हैं जो शासन से जुड़े रहे जो हार कर अलग हुए वे अग्रहरि है ।
उपरोक्त कमेंट किया
शिवकुमार गुप्त अग्रहरि रायबरेली
Bhai ye category aarthik adhar par h na ki caste ke adhar par
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