अग्रहरि जाति का संक्षिप परिचय

१२वीं शताब्दी सन ११९४ इसवी मे वैश्य शिरोमणि महाराजा अग्रसेन की खुशहाल नगरी अग्रोहा मे एक विदेशी मुग़ल आक्रांता शहाबुद्दीन गौरी ने अपनी सेना के साथ अग्रोहा प्रदेश पर मध्य रात्रि को में आक्रमण कर दिया। आक्रमण भी उस समय किया जिस वक्त पूरी नगरी निद्रा में सोया पड़ा था।  इस घटना मे कुछ अग्रसेन वंशज इस युद्ध मे लोहा लेते हुऐ शहीद हो गये और कुछ को कैदी बना लिया गया और कुछ को धन व जागीर का लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया गया।

 १) अग्रोहा धाम २) अग्रोहा का खंडहर ३)  गंगा नदी के तट पर स्थित अग्रहरि उद्गमस्थल डलमऊ
पितामह महाराजा अग्रसेन एवं माता माधवी, वैश्यों की कुलदेवी महालक्ष्मी और नाग देवता 

इस प्रकार से अग्रोहा गणराज्य पर मुगल सम्राज्य स्थापित हो गया। तत्पश्चात मुसलमानो के दुर्व्यवहार और दमन  से खिन्न होकर वहा बसे लाखो अग्र वैश्य अन्य प्रदेशो की और पलायन कर दिये। इसी क्रम में मे अग्रसेन वंशजो का ९४वें परिवार का एक जत्था अग्रोहा छोड युमुना नदी पार कते हुए वर्तमान के उत्तर प्रदेश प्रान्त मे गंगा किनारे बसे  डलमऊ नगर में डेरा डाल कर यहीं बस गया।  शुरुआत से आज तक यही डलमऊ नगरी इनका केन्द्र बिन्दु रहा। डलमऊ के निकट ही हमारे पूर्वजो द्वारा बसाया गया बैसवारा (संभवतः वैश्यवाडा, जो कालांतर में बैसवारा हो गया हों) एक नगर है, जहाँ पर आज भी ज्यादा संख्या मे अग्रहरि रहते है। किन्तु वर्तमान में ये देश के हर कोने में फ़ैल गये हैं। अनुमानतः हमारे समाज की जनसंख्या करीब 30-40 लाख के आसपास है। 

अग्रहरि एक अदभुत योद्धा, पराक्रमी, और तेजस्वी व धार्मिक प्रब्रत्ति के होते है।  आज भी यज्ञ करते है और जनेऊ धारण करते है।  एक स्त्री से विवाह करते हैं। वैश्य धर्म का पालन करते हुए मांस-मदिरा से दूर रहते है व प्राचीन मान्यताओ से जुडे हुऐ है। यह लोग आज भी श्रवण माह मे नाग देवता की पूजा करते है। नागपंचमी को पर्व की तरह मनाते है एवं घरो मे नागदेवता का चित्र बनाते है। शादी-ब्याह और शुभ कार्यो मे मोर मौरी और नाग-नागिन की पूजन करते है। इनका मुख्य कार्य क्रषि और व्यापार है क्योकि पितामह महाराजा अग्रसेन का सीधा सम्बन्ध नागवंश से रहा है। व्यापारीगण दीपावली के दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा-अर्चन करते हैं। बड़े-पुरुष, काले-गोरे, गाजी मियाँ आदि भी कुलदेवता के रूप में पूजे जाते हैं।


अग्रहरि महाराजा अग्रसेन को पितामह मानते हैं और उन्हें आराध्य की तरह पूजते हैं। इन्होने १२वीं शताब्दी की त्रासदी मे मुगलो से किसी तरह का समझौता नही किया परिणामस्वरूप इन्हे सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पडा।  
संभवतः तभी इन्हे अपना मूल गोत्र और नाम छिपाकर रहना पडा क्योकि मुगलो ने इनका आखिरी छोर तक पीछा किया था आज भी अग्रहरि अपनी आन, बान और शान के लिये जाना जाता है। कुलदेवी महालक्ष्मी का वरदान और पितामह अग्रसेन का आशीष ही कहेंगे कि एक अग्रहरि गरीब हो सकता हैं, लेकिन कभी वह भूखा नहीं मरता। वह अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं करता। 

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बहुत ही सुंदर जानकारी

जय श्री अग्रसेन

Jay shree Agarshen


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