१) अग्रोहा धाम २) अग्रोहा का खंडहर ३) गंगा नदी के तट पर स्थित अग्रहरि उद्गमस्थल डलमऊ |
इस प्रकार से अग्रोहा गणराज्य पर मुगल सम्राज्य स्थापित हो गया। तत्पश्चात मुसलमानो के दुर्व्यवहार और दमन से खिन्न होकर वहा बसे लाखो अग्र वैश्य अन्य प्रदेशो की और पलायन कर दिये। इसी क्रम में मे अग्रसेन वंशजो का ९४वें परिवार का एक जत्था अग्रोहा छोड युमुना नदी पार कते हुए वर्तमान के उत्तर प्रदेश प्रान्त मे गंगा किनारे बसे डलमऊ नगर में डेरा डाल कर यहीं बस गया। शुरुआत से आज तक यही डलमऊ नगरी इनका केन्द्र बिन्दु रहा। डलमऊ के निकट ही हमारे पूर्वजो द्वारा बसाया गया बैसवारा (संभवतः वैश्यवाडा, जो कालांतर में बैसवारा हो गया हों) एक नगर है, जहाँ पर आज भी ज्यादा संख्या मे अग्रहरि रहते है। किन्तु वर्तमान में ये देश के हर कोने में फ़ैल गये हैं। अनुमानतः हमारे समाज की जनसंख्या करीब 30-40 लाख के आसपास है।
अग्रहरि महाराजा अग्रसेन को पितामह मानते हैं और उन्हें आराध्य की तरह पूजते हैं। इन्होने १२वीं शताब्दी की त्रासदी मे मुगलो से किसी तरह का समझौता नही किया परिणामस्वरूप इन्हे सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पडा।
संभवतः तभी इन्हे अपना मूल गोत्र और नाम छिपाकर रहना पडा क्योकि मुगलो ने इनका आखिरी छोर तक पीछा किया था आज भी अग्रहरि अपनी आन, बान और शान के लिये जाना जाता है। कुलदेवी महालक्ष्मी का वरदान और पितामह अग्रसेन का आशीष ही कहेंगे कि एक अग्रहरि गरीब हो सकता हैं, लेकिन कभी वह भूखा नहीं मरता। वह अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं करता।
3 comments
बहुत ही सुंदर जानकारी
जय श्री अग्रसेन
Atti uttam
Jay shree Agarshen
EmoticonEmoticon